उत्तराखंड

हैक्सी-डैक्सी बॉक्स द्वारा दी गयी व्यवहारिक कला की शानदार प्रस्तुतियां

 

हैक्सी-डैक्सी बॉक्स द्वारा दी गयी व्यवहारिक कला की शानदार प्रस्तुतियां

देहरादून ,दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से असजद दोपहर बाद दून घाटी की पुकार शीर्षक के तहत हैक्सी-डैक्सी बॉक्स के कलाकारों द्वारा कई कलात्मक प्रस्तुतियां दे गयीं. यह प्रस्तुति अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार कला महोत्सव के सातवें संस्करण के एक भाग की प्रस्तुति थी. इसमें भारतीय कलाकार के रूप में डीआर. आनंद जाससवाल, जोविअल जैसमिन, हरिंदर, मुकेश सिंह, मोहन जांगिड, नितेश कुशवाहा, नंदिता बासक, पीके चोपड़ा, राहुल कुमार राजभर, शतद्रु सोवन, डॉ.स्नेहलता जांगड़ा, सौरव हलदार, डॉ. विश्वजीत सिंह तथा
वैश्विक कलाकारों के रूप में कारफोन लियू ताइवान, गिलिवंका केडज़िओर फ्रांस, जिजी पार्क अनडॉक दक्षिण कोरिया, जूलिया कुरेक पोलैंड, मार्क विंसेंट ओमेगा, फिलीपींस, शिह-मिन सन ताइवान, ताकाओ कावागुची जापान, तेरुयुकी तनाका जापान ने प्रतिभाग किया.

कलाकार टीम के प्रमुख शतद्रु सोवन ने कहा कि यह महज एक प्रदर्शन नहीं है। यह घाटी की पुकार है -जिसमें गहन दर्द,टीस और समस्याओं का दर्शन है.

यह एक बहु-स्थल, बहु-कलाकार अभियान है जिसे एचडीबॉक्स द्वारा आयोजित सातवें अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार कला महोत्सव की केंद्रीय परियोजना के रूप में परिकल्पित किया गया है।

शतद्रु ने आगे कहा कि उत्तराखंड के हिमालय की तलहटी में बसी दून घाटी में शुरू होता है- एक ऐसा क्षेत्र जो अब पारिस्थितिक तनाव, सांस्कृतिक क्षरण और मनोवैज्ञानिक विखंडन का सामना कर रहा है। देहरादून मात्र एक स्थान नहीं बल्कि एक संवेदनशील उपस्थिति है : इसके फेफड़े जंगलहैं , नदियाँ शिराएँ हैं और मौन साँस है। आज, वह साँस अनियंत्रित शहरीकरण और पर्यावरणीय उपेक्षा के बोझ तले लड़खड़ा रही है।

अभियान क़े कलाकार यहाँ रहने, जुड़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए एकत्र हुए हैं। अनुष्ठान, आंदोलन, ध्वनि और
व्यवहारिक कला की एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियों में भारत, अमेरिका, दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान, दक्षिण-पूर्व एशिया, यूरोप और ग्लोबल साउथ के एक दर्जन से ज़्यादा कलाकारों ने इसमें साझेदारी कर अपना योगदान दिया। उनकी विविध प्रथाओं को शरीर के ज़रिए प्रतिक्रिया से और हाव-भाव के ज़रिए मुखरित किया.

प्रस्तुति क़े दौरान वक्ताओं ने कहा कि क्योंकि यह कला और सक्रियता, अनुष्ठान और प्रतिबिंब के बीच की रेखा को धुंधला कर देता है। इसलिए यह तमाशा करने वाले कलाकार के रूप में नहीं, बल्कि स्थान विशेष के दर्द को मूर्त रूप देने वाले और उसे मूर्त रूप देने वाले पात्र के रूप में कार्य करने के लिए आमंत्रित करता है। यह प्रस्तुति कोई तमाशा नहीं अपितु जीवंत उपस्थिति का एक आह्वान है।
कार्यक्रम का संयोजन शतद्रु सोवन ने किया.

इस अवसर पर शहर क़े अनेक कला प्रेमी, रंगकर्मी, लेखक व बुद्धिजीवी लोग और पुस्तकालय क़े तमाम पाठक उपस्थित रहे.

 

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